फिर भी

खुद को तलाशने का जूनून

junnun khud ko dhundhne ka

मेरी कविता उस समय को दर्शाती है, जब हम शिक्षा पूरी कर अपने दोस्तों से बिछड़ कर जीवन सफर में कुछ करने के लिए लौटते है।

जिस प्रकार सूरज प्रतिदिन समय के साथ उदय होकर पूरे जगत में अपनी ऊर्जा से सभी को प्राण-जीवन देकर अंधेरे से उजाले की ओर जाने की शिक्षा देता है, ठीक उसी प्रकार जीवन के कठिन, उतार – चढ़ाव और संघर्षमयी सफर में शिक्षा भी अपने संगी-साथीयों के साथ चलते-चलते हमें सूरज की तरह अंधेरे से उजाले की ओर जाने की प्रेरणा देता है।

सूर्य सुबह का अब ढलने को आया है,
पंछियों का साथ भी छूटने को आया है।
एक आशियाने में बसी ये चहचहाहट,
और सपनों के पंखों पर लगी उड़ने की चाहत।

कुछ हवाओं के रूख ने,
सुहाने पलों को बाँध दिया।
डगमगाती लहरों का सफर,
चंद पलों में पार किया।

खुद को तलाशने के जुनून ने,
मंजिलों को पहचान लिया।
बहती हुई जिंदगी ने,
समुंदर सा प्यार दिया।

किस्मत थी पंछियों की,
जो साथ यहां का पाया।
व ज्ञान के प्रकाश से,
अंधकार को मिटाया।

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न “विशाखा जैन” ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com

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