फिर भी

ऐसा नहीं की छोटे बड़ो से सीखना नहीं चाहते

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि कभी-कभी जीवन में बड़े छोटो को और कभी छोटे बड़ो को समझ नहीं पाते क्योंकि छोटे ये सोचते है कि बड़ो ने ये दुनियाँ हमसे ज़्यादा देखी है तो वो हमे प्यार से हर बात समझायेंगे और बड़ो को लगता है छोटे अब बड़े होगये है उन्हें अब समझाने की ज़रूरत नहीं लेकिन बड़े कभी-कभी ये भूल जाते है कि माता पिता चाहे कितने ही बड़े क्यों न होजाये बच्चे तो उनसे हमेशा छोटे ही रहते है।

फिर जब बड़े इस बात की गहराई को समझ जाते है फिर वो बच्चो को माफ़ कर देते है उन गलतियों के लिए भी जो उन्होंने करी भी नहीं। छोटे बड़ो को जवाब न दे और बड़े कभी-कभी छोटो की बात भी सुने क्या पता कभी छोटे बड़ो को सही राह दिखादे क्योंकि छोटा ये सब बड़ो से ही तो सीखता हुआ बड़ा हुआ है। दोनों की अहमियत एक दूसरे के लिए ज़रूरी है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

ऐसा नहीं की छोटे बड़ो से सीखना नहीं चाहते।
जीवन की चोटे, तो छोटे पल-पल है खाते।
उन चोटों पर मरहम, लगाने की उम्मीद वो बड़ो से लगाते।
तब क्या करे जब बड़ा उन चोटों को देख ही न पाये??
उन छोटो पर मरहम लगाने के बजाये,
वो अनजाने में छोटे को दुख पहुँचाये??
सबने ज़िन्दगी अपने-अपने तरीके से देखी है।
अपने अहंकार की माला जिस किसी ने भी अपने से दूर फेंकी है।
उसने ही जीवन की धूप, सुकून से सेकी है।
चुप रह कर जब छोटा सीखता ही जायेगा।
उस चुप्पी में छुपे प्यार का एहसास एक दिन बड़े को भी होजायेगा।
मिट जायेगी वो दूरी भी, जो कभी थी ही नहीं।
छोटे को भी मिलेगी माफ़ी, जो उसने कभी की ही नहीं।

धन्यवाद।

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