फिर भी

अर्जी ए खुदाया

अर्जी ए खुदाया

खुदा की खुदाई ना समझ पाए,
ये मेरा है भी या नहीं?
अब तक समझ न पाए।

बना कर रास्ते मेरे लिए,
क्यों खुद ही मिटा देता है?
अब तक समझ न पाए।

दुआ को कबूल कर के ये मेरी,
बक्षता है बदस्तूर दर्द,
कहानी ये बड़ी अजीब है,
किसको हालत अपनी सुनाऊं?
अब तक समझ न पाए।

लिखा तकदीर का ना बदल पाए,
कोशिश करना ना छोड़ा है पर,
खुदा की मर्ज़ी क्या है?
अब तक समझ न पाए।

शायद इस पल खुदा समझ जाए,
बढ़ रहे है जिस मंज़िल की तरफ,
कुछ इंतजाम वो भी करे,
देखते है तब तक,
मेरा यह खुदा ही समझ जाए।

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न रमा नयाल ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com

Exit mobile version