फिर भी

मुझमे सब्र नहीं

love shayri mujhme sabr nhi

जानता है दिल कि तुम पास हो मेरे,
पर मुझमे सब्र नहीं,
है लाखो इल्म-ओ-नुख्स तुझमे,
उनसे मुझपर कोई फर्क नहीं.

लिखा नहीं अपनी ख़ुशी के लिए,
ये मालूम है तुझे,
क्योकि बिना तेरी जिद किये,
उनका कोई जिक्र ही नहीं.

लगे है कुछ धब्बे तेरे दिल पे भी,
आसानी से जो छुट जाये मेरा प्यार वो इत्र नहीं,
मालूम है सारे शहर को जो बेइंतेहा मोहब्बत है तुझसे,
न जाने तुझपर कोई फर्क नहीं.

वो कहता है हर पल एहसास दिलाती है मेरी कविताये,
मेरे दिल-ए-ऐतबार का,
पर जो तेरे दिल को उल्झा दे,
मेरे पास वो तर्क नहीं.

जानता है कि तुम पास हो मेरे,
पर मुझमे सब्र नहीं.
मानता है दिल कि तुम पास हो मेरे,
पर मुझमे सब्र नहीं.

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न कुमुद सिंह ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी कोई स्टोरी है. तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com

Exit mobile version