चांदनी रात में,
रोशनी चांद की,
मेरे दिल को जलाए,
तेरा कोई वजूद नहीं,
पर भी इस दिल को,
याद तेरी ही क्यों आए,
मचलता हूं,
तूझे पाने को,
ईश्क में तेरे,
डूब जाने को,
तू ना होकर भी,
अपने होने का
एहसास क्यों कराए,
दिल की तू है चाहत,
आ दिल को दे दे राहत,
ओर कितना तड़पाएगी,
कई बार मैं सोचता हूं,
कि क्या कभी तू सच
में नज़र मुझे आएगी …..???
हितेश वर्मा, जयहिन्द
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Nice Poetry
VERY NICE