यूपी में बहन जी की माया खत्म होने लगी. यूपी में सबसे ज्यादा नुकसान मायावती को ही हुआ है. नतीजे आते ही मायावती ने हार का ठीकरा EVM पर फोड़ दिया, मायावती ने चुनाव आयोग से चुनाव रद्द करने से लेकर पुराने बैलेट सिस्टम दोबारा चुनाव कराने तक की मांग कर दी. अखिलेश यादव ने भी मायावती की मांग का समर्थन कर दिया. ईवीएम पर सवाल के बीच सियासी पंडितों का मानता है, कि यूपी में बीजेपी की इस बंपर जीत की सबसे बड़ी वजह मायावती ही हैं.
इस बार मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले के तहत 100 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया था, लेकिन उनका यह फॉर्मूला बीएसपी की जगह बीजेपी के ज्यादा काम आया और मुस्लिम बहुल्य सीटों पर भी बिना एक भी मुस्लिम को टिकट दिये बीजेपी जीत गई, मुस्लिम बहुल्य देवबंद, अलीगढ़ या मेरठ दक्षिण जैसी करीब 60 सीटों पर बीएसपी के गणित का फायदा बीजेपी को मिला.
मायावती ने सपा के मुस्लिम उम्मीदवार के होने के बावजूद मुस्लिम को टिकट दी, इससे मुस्लिम बाहुल्य सीट पर भी मुसलमानों का वोट बंट गया और बीजेपी के नॉन मुस्लिम उम्मीदवार को आसानी से जीत मिल गई और ये किस्सा सिर्फ देवबंद का नहीं है चांदपुर, मेरठ दक्षिण, अलीगढ़ में भी बीजेपी के उम्मीदवार जीत गए.
इतना ही नहीं मायावती के मुस्लिम प्रेम की वजह से बीएसपी से जुड़ा सवर्ण वोट भी दूर हो गया जबकि बीजेपी सवर्णों को यह समझाने में कामयाब रही कि बसपा और सपा मुस्लिम परस्त पार्टी हैं.
मायावती ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर भरोसा जताया, लेकिन 2014 से बीजेपी ने बसपा के दलित वोट बैंक में भी सेंधमारी कर दी थी मायावती इसे समझ नहीं सकीं.
ये नतीजे ये भी बताते हैं कि अब दलित वोटबैंक पर मायावती की पकड़ पहले जैसी नहीं रही है, और उसका नतीजा यह हुआ कि अब मायावती यूपी की सियासत में हाशिए पर पहुंच गई हैं