फिर भी

इस मन को शांत कर, सही गुरु को पहचानों।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को बहुत सी जीवन की गहराई सरल शब्दों में समझाने की कोशिश कर रही है. वह कहती है हमारी आँखे वही देखती है जैसे हमारी सोच होती है, इसलिए हर इंसान को बुराई में अच्छाई नज़र नहीं आती। हमारी सोच ही हमे समाज में एक अनोखी जगह देती है, इसलिए सोच सही रखनी बहुत ज़रूरी है, हर रोज़ अभ्यास करने से सोच सही करी जा सकती है और ऐसा ज़रूरी नहीं कि केवल ज्ञानी लोग ही अच्छी सोच रखे, अच्छी सोच का पता केवल इंसान के व्यवहार से पता चलता है। कवियत्री कहती है ये भी एक बहुत बड़ी कला है कि इंसान सही गुरु को पहचाने, याद रहे जो इंसान ज्ञान को जीवन में उतार कुछ बड़ा हासिल करता है, वही सही गुरु होता है। ऐसे गुरु को पाना सौभाग्य की बात होती है।
guru dronacharya and eklavyaअब आप इस कविता का आनंद ले।

निगाहें वही देखती है,
उसे जो ये दिमाग दिखाना चाहता है।
गलत दिशा में सोच कर,
ये प्राणी को कैसे नाच नचाता है।

काबू पाना इस मन पर,
न होता इतना असान,
लगाम लगाई जिसने,
बनायीं उसने फिर अनोखी पहचान।

दोष इसका नहीं हमारा है।
गलत की गहराई जान कर भी,
बहुत लोगो को बस इसी का ही सहारा है।
जो न समझे इस बात को, वो कैसा बेचारा है??

अपने ही हाथों,
हम अपनी दुनियाँ सजाते है।
गलत सोच दी दिशा में,
हम अपनी दुनियाँ में ही आग लगाते है।

दुखो से भरा जीवन,
इंसान अपने आप ही तो बनाता है।
अपने अंदर जो न झाँके,
वो दूसरों को कैसे राह दिखाता है??

सही गुरु को जानना,
ये भी एक कला है।
दूसरों से ज्यादा जो खुदकी गलती सुधारे,
वो इस जग में सबसे भला है।

धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।

 

 

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