बच्चों के लिए मोबाइल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कितना घातक है इसके बारे में हम समय-समय पर आप को जागरुक करते रहते हैं। स्मार्ट फोन की उपयोगिता पिछले कुछ समय में काफी बड़ी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि आजकल परिवार के सदस्यों की जगह स्मार्ट फोन ने ही ले ली है। जब स्मार्ट फोन नहीं थे तब भी सभी काम होते थे परंतु आज स्मार्टफोन को लोगों ने अपनी कमजोरी बना लिया है, सब कुछ इस स्मार्टफोन पर निर्भर होता जा रहा है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि बच्चों के लिए मोबाइल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कितना घातक है।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
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अर्थात कबीर दास जी ने भी अपने दोहे के द्वारा यह समझाने की कोशिश की थी कि आवश्यकता से अधिक कोई भी वस्तु हानिकारक हो सकती है। बच्चों का मस्तिष्क बेहद संवेदनशील होता है जो उम्र विकास की होती है उसमें मोबाइल का रेडिएशन बच्चों के नर्वस सिस्टम तथा हारमोंस को प्रभावित कर रहा है। जिस उम्र में बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास होना चाहिए वहां मोबाइल की लत बच्चों में दोनों ही प्रकार की विकृतियां पैदा कर रही है।
मोबाइल का एडिक्शन बच्चों के लिए कितना खतरनाक है इस पर मुंबई लीलावती अस्पताल में स्टडी की गई जिसमें खुलासा किया गया कि बच्चों का 6 घंटे से अधिक फोन का इस्तेमाल करना हार्मोन्स में गड़बड़ी पैदा करने के अलावा शारीरिक विकृतियां जैसे गर्दन की हड्डी में झुकाव, रीड की हड्डी में विकृति तथा आंखों की रेटिना पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। मोबाइल रेडिएशन का खतरा केवल मेट्रोपॉलिटन शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों में भी बड़ा कारण बन कर सामने आ रहा है।
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इंडियन मेडिकल कॉलेज के अध्यक्ष डॉक्टर के के अग्रवाल का कहना है कि माता-पिता बच्चों को फोन से अलग कर पाने में असमर्थ है। रिपोर्ट में हुए खुलासे के मुताबिक उत्तर भारत में 70 फीसदी बच्चे मोबाइल एडिक्शन के शिकार हैंं। यह आंकड़ा अपने आप में बहुत बड़ा है और हैरत की बात तो यह है कि यह आंकड़ा मात्र 7 से 10 साल की उम्र के बच्चों का है जबकि 2 से 5 साल के बच्चों के लिए फोन एक खिलौना बन चुका है।
उत्तर भारत के राज्य में दिल्ली के 98 बच्चे, यूपी के 82, बच्चे पंजाब के 93, हरियाणा के 79 और बिहार के 89 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो दिन में 8 घंटे से ज्यादा फोन का इस्तेमाल करते हैं।