प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि दु:ख के रहते कभी अपनी परिस्थितियों को छोड़ मत भागो क्योंकि चाहे हम दुनियाँ के किसी भी कोने में क्यों न हो हम अपने दु:खो से भाग नहीं सकते और अगर सब कुछ छोड़ने का इरादा कर ही लिया है तो अपनों की सहमति और उनके साथ आगे बड़ो। इतिहास में बहुत से महात्मन ने ज्ञान पाया है जैसे राम ,कृष्णा स्वामी विवेकानंद, गौतम बुद्धा, निचिरेन दाइशॉनिन,आदि आज हमारे पास उनकी दी हुई बहुत सी पुस्तके है हम चाहे तो उन पुस्तकों को पढ़ कर अपना जीवन सुधार सकते है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
ज्ञान की राह में तुम क्यों अपना घर छोड़ते हो?
ईश्वर के खातिर तुम क्यों अपनों से मुँह मोड़ते हो?
क्या तुम्हे पता नहीं ईश्वर की छवि हम सब में बस्ती है।
तुम्हे यू करता देख,ये कायनात भी तुम पर हंसती है।
ईश्वर की दी किताबे घर में भी तो बैठ के पढ़ सकते हो।
उस ज्ञान को अपनाके तुम भी तो अपने क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हो।
क्या घर-गृहस्ती का काम, काम नहीं।
क्या गृहस्थ जीवन वालो का इतिहास में नाम नहीं?
फिर क्यों अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर तुम भागते हो।
ठोकर खाकर जीवन की, फिर जाके ही क्यों तुम जागते हो?
घर रह कर ज़रा अपनों को भी संभालो।
अपनों से दूर रह कर तुम बस अपने को ही मत सवारों।
अपनों से दूर क्या जीवन सुहाना लगता है?
विप्रीत परिस्थितियों से दूर, क्या कोई अपने दुखो से भाग सकता है?
ज्ञान की बातें सुन सबको शुरू-शुरू में ऐसा ही लगता है।
विप्रीत परिस्थितियों से भाग शायद तुम्हे तो सुख मिल जायेगा।
मगर ये तो सोच, बिन तेरे सहारे के, तेरा आशियाना तो बिखर जायेगा।
जाना ही है तो, सबकी सहमति के साथ, सबको अपने संग ले लेना।
अपने सुख के खातिर तुम दूसरो को कभी दुख न देना।
क्योंकि ज़िन्दगी की कठिनाइयों से हर हाल में हमे लड़ना होगा।
गलत का साथ छोड़, हमे हर हाल में अपनों के संग आगे बढ़ना होगा।
धन्यवाद।