प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को कवि लोगो का दर्द बताने का प्रयास कर रही है। वह कहती है एक ज़माना था जब अक्सर सारे लोग के मन को कवियों की बातें भाती थी.कवियों की इज़्ज़त उनकी अच्छी सोच के लिए की जाती थी। आज ज़माना बदल गया है कवि सम्मेलन में भीड़ भी कम जमा होती है। कवियत्री कहती है कवि तो अपने भाव बयाँ करता जाता है अब ये तो लोगो पर निर्भर करता है कि वो उन बातो को समझे या उनका उपहास उड़ाये।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
तो क्या हुआ अब मेरी बातें,
लोगो को कम समझमे आती है।
खुश हूँ सब नहीं तो क्या,
कुछ लोगो को ही सही, मेरी मन की बातें तो भाती है।
तो क्या हुआ अब वो पुराना ज़माना नहीं रहा,
मेरी रूह ने भी हर परिस्थिति में, मुझसे बस ये ही कहा,
लिख दे अपने मन की बातें तू जी खोल के,
करले अपना मन भी हल्का, तू अपनी हर एक बात बोल के।
कोई तो होगा जिसे मेरी बातें, आज भी राह दिखायेंगी।
रोते हुये इंसान को, ये दिलासा तो ज़रूर दे पायेंगी।
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तो क्या हुआ अब मेरी सुन, लोग मुझसे बचना चाहते है।
अक्सर देखा है उन्हें भी रोते हुये, जो सामने मेरे मुस्कुराते है.
जीवन की गहराई तो एक दिन सब को जाननी है।
ईश्वर की बताई हर एक बात, हम सभी को माननी है।
तो क्यों अच्छी सोच, हर वक़्त रखने से डरते हो??
इस दुनियाँ में रहकर यारो, हर पल तो तुम यहाँ मरते हो।
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तो क्या हुआ अब जीन्स टॉप पहनकर,
मैं कवि सम्मेलन में जाती हूँ।
खुदमे खोकर अक्सर मैं भी, ये लोगो को बताती हूँ।
ज्ञान समझना है तो मन की आँखे खोलो,
किसी के वस्त्र को देख, उसके लिए कुछ गलत न बोलों।
अच्छी सोच अच्छे वस्त्र पहन कर नहीं आती।
इस छोटी सी बात को समझने में, मानव की आधी उम्र निकल जाती।
धन्यवाद