फिर भी

यूँ ही तो कोई महान नहीं बनता

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि इंसान की असली सुंदरता उसके सादगी भरे व्यवहार में उसके चेहरे पर शांति बनकर झलकती है। कवियत्री सोचती है असली तारीफ तो वही है जो लोग हमारे सामने अथवा हमारे पीछे से भी हमारे लिए करते है।

ऐसा ज़रूर नहीं की हर इंसान ही हमे पसंद करे लेकिन जो हमे समझता है जिसके विचार हमसे मिलते है कम से कम वो तो हमे समझे और हमारे लिए गलत न बोले क्योंकि जब एक इंसान दूसरे इंसान को समझ लेता है फिर वो उसके लिए पीछे से भी गलत नहीं बोलता इसलिए आप ये सोचो आपने अपने व्यवहार से कितने लोगो को अपना बनाया है जो आपके लिए पीछे से भी गलत नहीं बोलते जब ऐसे लोगो की जन संख्या आपके जीवन में बढ़ जायेगी तब आप महान बन जाओगे लेकिन याद रखना दोस्तों एक महान मानव बनने में लोगो की पूरी उम्र ही निकल जाती है। महान इंसान भले ही अपने जीवन काल में कड़ी परीक्षाओ का सामना करते है लेकिन इतिहास के पन्नो में वो ही लोग जग मगाते है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

चेहरे में छुपी शांति की सुंदरता,
अलग ही झलकती है।
किसीकी पढ़के आँखों की सुंदरता,
उसे हर बार देखने को, ये अँखियाँ भी तरसती है।
क्योंकि प्रशंसा वो है, जो दूसरे हमारी करते है।
हमे महान बताकर वो हमपर यू ही नहीं मरते है।
देखा ही होता है, उन्होंने हममे कुछ अनोखा।
जिसकी प्रशंसा वो हमारे पीछे भी दूसरों से करते है।
हमे समझ कर बार-बार,वो फिर हमसे नहीं उलझते है।
क्योंकि नाज़ुक रिश्तो के उलझे धागे,यूही नहीं सुलझते है।
देनी पड़ती है कड़ी परीक्षाये,
फिर जाकर सबको एक दूसरे की कीमत समझ में आती है।
एक मानव को महान बनने में उसकी सारी उम्र ही निकल जाती है।
फिर उसकी महानता की कहानियाँ,
इतिहास के पन्नो में जगमगाती है।

धन्यवाद।

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