प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि जीवन बहुत ही छोटा है वक़्त रहते अपने रूठो को मनालो और हो सके तो लड़ाई की जड़ को ही मिटा दो। कवियत्री सोचती है कोई तो वजह होगी कि हम यहाँ इस दुनियाँ में मिलते है वक़्त-वक़्त पर लड़ते तो कभी अपनों संग प्यार बाटते है। अगर हम रूठ भी जाये तो हमारे अपने ही तो हमे प्यार से मनाते है हमे रोता देख वो ही तो हमे प्यार से मनाते है ज़रा सोचो ये ज़िन्दगी कितनी बेरंग होती अगर हमारे अपने हमारे साथ न होते।
लड़ाई की जड़ को ही मिटा दो,
प्यार का पाठ इस दुनियाँ को,
तुम अपने अच्छे व्यवहार से सिखा दो।
अपनों से रख बैर, किसे अच्छा लगता है।
शिकायतों को रख परे,
पराये को भी, कोई अपना बना सकता है।
क्योंकि इलज़ाम के मोती जब तक रिश्तो में जड़ते जाते है।
अपनी बर्बादी की ओर ही, लोग बढ़ते जाते है।
अभार के मोतियों से रिश्तो की माला बनाओ।
अपनों में रह कर भी तुम अपनों को मत सताओ।
कोई तो रिश्ता होगा पुराना,
जिसने फिर से हमे यहाँ मिलाया है।
अपनों के संग वापिस रहने का अफसर हमे दिलाया है।
देखो कैसे हमारे प्यारे से रिश्तो ने,
हमे यहाँ हर वक़्त प्यार से बहलाया है।
रोती हुई सिसकती पीठ को प्यार से सहलाया है।
वक़्त रहते, शायद इसलिए ही, हमे रिश्तो का महत्व समझ में आया है।
धन्यवाद