फिर भी

अंदरूनी जख्म

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि दिल के ज़ख्म शरीर के ज़ख्म से ज़्यादा गहरे होते है जिन्हे हर कोई अपनी आँखों से देख नहीं पाता ये सिर्फ वही समझ सकता है जिसके साथ वैसा ही कुछ हुआ हो।

याद रखना दोस्तों जिसे कोई नहीं समझता उसे बस ईश्वर समझते है क्योंकि वो हम सब के अंदर ही वास करते है उन्हें हमारा बीता कल आज और आने वाला कल सब पता है इसलिए चाहे ये दुनियाँ कुछ भी बोले कभी विपरीत परिस्थितियों में अपना हौसला मत खोना तुम्हारा बुरा वक़्त ही तुम्हे तुम्हारे अपने और पराये की पहचान कराता है और वो वक़्त ही तुम्हे तुम्हारे सच्चे मित्र जो की तुम खुद ही हो उससे मिलवाता है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

शरीर के ज़ख्म तो दिख जाते है।
मगर दिल के घाव, कोई देख नहीं पाता।
कोई मचाता हंगामा यहाँ,
तो कोई तो यहाँ, अपनी बात भी नहीं कह पाता।
अपनों के खातिर कोई अपना,
इस दुनियाँ की सारी पीड़ा को यूही सह जाता।
उन घावों पर मरहम, तो बस ईश्वर ही लगाते है।
अपने सच्चे भक्त का रास्ता वो अपने हाथो से सजाते है।
सहलाब उठता उस रास्ते में,
लेकिन सच्चे सुख की छाया भी उससे परे नहीं।
पढ़ी है ईश्वर की ही दी हुई कई किताबे,
ये बात भी हमने बस यूही कही नहीं।

धन्यवाद

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