फिर भी

मैं कुछ लिखता हूँ

mai kuch likhta hu

मैं कुछ लिखता हूँ,
देना तुम मुझको अपनी राय,
देखना कविता ऐसी बन जाय,
जो सबके मन को भाय,

क्या लिखूं बताओ तुम,
पहलु कोई नया सुझाओ तुम,
कहानी, कविता, गीत लिखवाओ तुम,
सुनकर जिसे ख़ुशी से झूम जाओ तुम,

कविता ऐसी बने, जिसमें ना हो,
शब्दों की परिधि,
सुनकर जिसे सब हर्षायें,
पप्पू, मुन्नी, मुन्ना और दीदी,

प्रकृति पर लिखूं,
देश की राजनीती पर लिखूं,
या दुश्मन के खिलाफ हमारी
कमज़ोर रणनीति पर लिखूं,

हमारे समाज पर लिखूं,
महंगे होते प्याज पर लिखूं,
या व्यक्ति आम पर लिखूं,
व्यक्ति किसी खास पर लिखूं,

भ्रष्टाचार पर लिखूं,
युवा बेरोज़गार पर लिखूं,
या आज के घटिआ आहार पर लिखूं,
प्रतिदिन कम हो रहे संस्कार पर लिखूं,

देशहित पर लिखूं, देश के खिलाफ लिखूं,
किन हालात पर लिखूं,
किस की बात पर लिखूं,
या प्रतिदिन समाचारों में बढ़ते वाद विवाद पर लिखूं,

बुरे पर लिखूं,
चंगे पर लिखूं,
या मंदे पर लिखूं,
दिन प्रतिदिन बढ़ रहे गोरखधंधे पर लिखूं,

धर्म पर लिखूं,
कर्म पर लिखूं,
या सोचता हूँ कभी कभी की क्यों ना,
दिन प्रतिदिन हर किसी में कम हो रही शर्म पर लिखूं,

गोरे पर लिखूं,
काले पर लिखूं,
या देश में चल रहे सफाई अभियान के बावजूद,
हर नगर में बहते गंदे नाले पर लिखूं,

देश की रक्षा करने वाली सेना पर लिखूं,
गद्दारों पर लिखूं,
या पुरे विश्व में बढ़ते विनाशक हथिआरों पर लिखूं,
प्रतिदिन सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ रही तोता मैना की कतारों पर लिखूं,

घर के आँगन पर लिखूं,
सजनी के साजन पर लिखूं,
या रिश्तों में हो रहे विभाजन पर लिखूं,
प्रतिदिन देश को विकास की तरफ ले जा रहे “राजन” पर लिखूं,

मैं कुछ लिखता हूँ,
देना तुम मुझको अपनी राय,
देखना कविता ऐसी बन जाय,
जो सबके मन को भाय,

हितेश वर्मा, जयहिंद

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