फिर भी

खुदमे तुझको खोज कर ये मैंने जाना

Bhagwan sbke andar baasta hai

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री ईश्वर से पूछ रही है कि कैसे दुनियाँ को ये समझाया जाये कि आप हम सब में बसते है लेकिन अपने क्रोध के रहते, अपने अंदर छुपे ईश्वर की बात हम सुन नहीं पाते। अपनी ही बुनी गलत सोच के कारण हमें जीवन में दुखों का सामना करना पड़ता है। आप हम सब के दिल में बसते है लेकिन हमारा अहंकार, क्रोध और ईर्ष्या हमे ईश्वर तक पहुँचने नहीं देता और हम गलत राह पर निकल जाते हैं।

आज कल के युग में हमने पाया कि लोगों के पास हर चीज़ का समय है पर ईश्वर की दी हुई किताबों पर बहुत कम लोग चर्चा करते हैं और उससे भी कम लोग हैं जो उन बातों पर अमल करके अपने जीवन में उतारते हैं। इन पक्तियों के ज़रिये वह ईश्वर से पूछती है कि जब आप सब के अंदर है तो इंसान आपस में एक दूसरों से क्यों लड़ता है??? जाना तो सबको हैं एक दिन, तो क्यों न हर दिन हम बस अच्छा ही करते जाये। अपने अच्छे कर्मो से हम दुनियाँ को जीत जाये।

खुदमे तुझको खोज कर ये मैंने जाना,
तेरी कही बातों पर,
चलता कहाँ ये ज़माना।
सब अपने-अपने ढंग से तुझे जानते हैं।
अपनी ही बुनी गलत सोच को ही बस लोग सही मानते हैं।
कैसे समझाऊ सबको कि तेरे मन में क्या हैं?
तेरी करुणा के गहरे सागर में ही तो समाया ये सारा जहाँ हैं।
शैतानों में भी बसी, तेरी छवि,
लोगों को अपने क्रोध रहते दिखती नहीं।
तेरी दी अच्छी किताबें भी, अब आसानी से बिकती नहीं।

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खुदमे तुझको खोज कर ये मैंने जाना,
तुझे सबके अंदर न देख,
क्यों लड़ता आपस में ये ज़माना??
असली के प्रभु को नज़र अंदाज़ कर,
क्यों आपस में सब लड़ते हैं।
मरना तो है ही एक दिन,
तो क्यों सब अच्छा ही कर नहीं मरते हैं।

खुदमे तुझको खोज कर ये मैंने जाना,
खुदमे तुझको खोज कर ये मैंने जाना।

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