फिर भी

मैं इश्क़ हूँ

main ishq hu re

मैं इश्क़ हूँ रे, मैं इश्क़ हूँ
तेरे उन लम्हों का, तेरी किताबों का
तुजसे जो कहता है, तेरी जो सुनता है

मैं इश्क़ हूँ रे, मैं इश्क़ हूँ
जो तुझमे ज़िंदा है, जो तेरे रंग सा है
थोड़ा पागल भी है, थोड़ा तुझमे ही है.

मैं इश्क़ हूँ रे, मैं इश्क़ हूँ
तेरे मुखादिब हूँ, तेरी नवाज़िश हूँ
कुछ तो हूँ खोया सा, कुछ धुआँ सुलगा सा हूँ.

मैं इश्क़ हूँ रे, मैं इश्क़ हूँ
जो खोलूं तो तेरा हूँ, जो रह लू तो मरता हूँ
जो एक पल में जीता हूँ
जो हल पल का साथी हूँ

मैं इश्क़ हूँ रे, मैं इश्क़ हूँ
कोई जो समझा है, वो लम्हा तो मैं ही हूँ
जो बन के बिगड़ती है,वो सिलवट तो मैं ही हूँ

मैं इश्क़ हूँ रे,
मैं इश्क़ हूँ

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न पियूष पांडेय ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी कोई स्टोरी है. तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com

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