फिर भी

परमात्मा का अंश तुम्हारे अंदर है

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि परमात्मा का अंश हम सब के अंदर होता है लेकिन इंसान अपनी क्षमताओं को न पहचान खुदकी तुलना हर छोटी-छोटी बात पर दूसरों से करता है वह ये भूल जाता है की गरीबी में पैदा होना ये उसके हाथ में नहीं था

लेकिन गरीबी में ही मरता ये उसकी गलती है क्योंकि कोई किसी और की मेहनत का नहीं खाता सबको अपनी मेहनत का फल मिलता है इंसान खुदको आलास के अंधकार में घेर लेता है और मेहनत नहीं करना चाहता। वक़्त रहते अपने अंदर ही छुपे अपने सच्चे दोस्त को पहचानो और खुदपर निर्भर होकर इस दुनियाँ में कुछ बड़ा कर जाओ।

अब आप इस कविता का आनंद ले.

हमारे अंदर परमात्मा का केवल,
एक छोटासा अंश ही होता है।
उसकी शरण में वक़्त पर न जाकर ही,
इंसान जीवन के हर पड़ाव में रोता है।
अपना घर, परिवार को,
हर इंसान ही यहाँ एक दिन खोता है।
परमात्मा के अंश को पूजने वाला,
हर व्यक्ति, हर रात, चैन से सोता है।

दूसरो में कमियाँ निकालना आसान है।
खुदपर निर्भर होकर ही,
बनाई हर महान व्यक्ति ने अपनी,इतिहास में पहचान है।
बुराई में भी अच्छाई देखने की कोशिश तुम करो।
अच्छे को बुरा कहने के ख्याल से भी तुम डरो।

किसीकी अहमियत उसके दूर,
जाने से ही,पता चलती है।
अपनों की कमी, अपनों से दूर होकर ही खलती है।
अपनों की कमी तभी खलेगी,
जब तुम खुदको ही भूल जाओगे।
अपने अंतर मन में छुपे परमात्मा के अंश को न पहचान,
तुम इस दुनियाँ की भीड़ में सुख चैन,
खुदसे कही बाहर नहीं पाओगे।

धन्यवाद

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