फिर भी

होश नहीं खोता वीर बेहोश भी होकर

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि वीर वो होते है जो बुरे वक़्त में भी अपना हौसला नहीं खोते। अपनी ख्वाहिशों को वो कभी दूसरे को धोखा देकर पूरा नहीं करते। उन्हें परवाह नहीं होती दूसरों की वो बस खुदको अंदर से सवारते है और सच का पथ अपनाते है और जो सच्चे है उन्हें कभी डर के जीना नहीं चाहिये क्योंकि सच के साथ भगवान होते है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

होश नहीं खोता वीर बेहोश भी होकर,
अपनी ख्वाहिशों के रहते,
तुम मारो ना किसीको भी बेईमानी की ठोकर।
आज की दी हुई ठोकर,
कल जब तुम्हारे सामने आयेगी।
बीते कल की याद ही तुम्हें फिर रुलायेगी, सतायेगी।
जिसने ना करा खुदको मज़बूत,
वो इस दुनियां में कैसे रह पायेगी??
मज़बूत इरादे ही इंसान को ऊंचा उठाते है।
वक़्त रहते जो लोग खुदको अंदर से सजाते है।
अपने हक़ में ,वो ही बस ईश्वर से खुलके कह पाते है।
क्योंकि सच्चाई के मार्ग पर, कई चोटे खानी पड़ती है।
जो है अगर सच्ची तू, तो फिर क्यों तू इस दुनियां से डरती है।

धन्यवाद

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