फिर भी

एक वक़्त था

ek waqt tha kavita
प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को यह समझाना चाह रही है कि वक़्त कितना बदल गया है पहले जिन कामों से सुकून मिलता था आज वही काम लोगो को सताते है। पहले कैसे ख़ुशी ख़ुशी सारा परिवार एक ही घर में रहता है अपने पर बीती बाते वो बस अपनों से ही कहता था। आज समय इतना बदल गया है की हम अपनों को भूल बाकी सबको अपनी मन की बातें बताते है। पहले लोग जिनके कर्म अच्छे होते थे लोग उनसे मिलने को तरसते थे उनके जैसा बनना चाहते थे लेकिन आज पैसे के आगे लोगो को जैसे कुछ दिखता ही नहीं।
माना आज सोच बदली है लेकिन कही न कही अपनों का संग भी छूट रहा है कोई किसी के आगे झुकना नहीं चाहता। ऐसा ज़रूरी नहीं की हमेशा बड़े ही ठीक हो गलती छोटे या बड़ो दोनों से हो सकती है मिलकर बैठ कर बात करे। बात करने से बहुत सी बड़ी से बड़ी बातें  सुलझ जाती हैं। ज़िन्दगी में झुकने वाले अक्सर सिकंदर कहलाते हैं। लेकिन याद रहे इतना झुकना की अपना सम्मान भी बना रहे। दूसरों को सही राह दिखाये लेकिन पहले खुदकी कदर करनी होगी। कुछ लोग ही इस बात की गहराई को समझेंगे।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
एक वक़्त था जब,
फिल्म द्वारा ज्ञान समझ जाते है।
खुद भले ही खाले रूखी सुखी,
मगर अतिथि को देव समझ उन्हें प्यार से खिलाते थे।
एक वक़्त था जब,
एक साथ बैठ अपनों के संग खाते थे,
अपनी भावनाये, संग बैठ अपनों के
सब एक-दूसरे को बताते थे।
एक वक़्त था जब,
शर्म और हया को अपना गहना समझते थे,
जो चलते थे सही कर्मो के मार्ग पर,
लोग ऐसे लोगों से मिलने को तरसते थे
एक वक़्त था जब,
दूसरों के दुखो को भी अपना समझते थे,
छोटी-छोटी बातों पर,
वह अपनों से नहीं उलझते थे।
एक वक़्त था  जब,
सारा दिन मेहनत कर सुकून की नींद आती थी।
प्यार भरी वो भीगी पलके नानी की,
हमें रात में कहाँनी सुनातीं थी।
एक वक़्त था जब ,
लोग अपने बच्चों संग खेलते थे।
दफ़्तर हो या घर की परेशानियाँ,
वह सब ख़ुशी से झेलते थे।
कृपा कर आप ये स्टोरी बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोगों सही ज्ञान तक पहुँचे।हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।
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