यूपी बोर्ड की परीक्षा 6 फरवरी से शुरू हुई और उप मुख्यमन्त्री डॉ0 दिनेश शर्मा के अनुसार 10 फरवरी तक 1047406 परीक्षार्थी परीक्षा छोड़ दिए। यहां यह ध्यान देना होगा कि परीक्षा उसी की होती है, जो सिखाया जाता है। परीक्षा किसी विषय की जानकारी को कितनी ईमानदारी से सीखा, उसकी परख होती है। परीक्षा केवल शिष्य की ही नहीं, गुरुजनों को भी कसौटी पर परखने व जांचने का आधार बनती है।
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ऐसे में निर्धारित 220 दिनों के मानक के बदले लगभग 110 दिन की पढ़ाई से ही परीक्षा के लिए बच्चों को मजबूर किया जाना, बच्चों के साथ अन्याय है। इसके साथ ही सरकार की नाक के नीचे शिक्षण सत्र की संख्या 220 दिनों में, सत्रारम्भ अप्रैल की जगह जुलाई में होना 50 दिन की देरी, शिक्षण दिवस के समय के कुल रविवार 31 दिन, विभिन्न त्योहारों को मिलाकर कुल छुट्टी 10 दिन, अलग-अलग कारणों से प्रशासन द्वारा छुट्टी के 8 दिन, बाढ़ के समय छुट्टी 15 दिन। इस तरह से शिक्षा के दिनों में कुल लगभग 104 दिनों की कम पढ़ाई हुई है।
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सरकार ने जब तय ही किया था कि वह परीक्षा फरवरी में ही करा लेगी, तो उसे अन्य सभी प्रकार की छुट्टियां निरस्त करते हुए बच्चों को पढ़ने के लिए पर्याप्त समय देना था। वैसे उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की संख्या का बेहद कम होना किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में बिना उचित शिक्षा व समय दिए परीक्षा करवाना तथा परीक्षा के पहले मीडिया में खबरें चलाकर बच्चों में परीक्षा के लिये डर पैदा करना तो उससे भी बड़ा गुनाह है। यह बच्चों के साथ अन्याय व जुर्म करने जैसा है। यह अन्याय तो और भी गम्भीर हो जाता है, क्योंकि शिक्षा मन्त्री स्वयं शिक्षक हैं। उन्हें प्रत्येक कार्यदिवस की खासियत का पता होना चाहिए।
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केवल यह कहना कि परीक्षा छोड़ने वाले सभी बच्चे नकल के भरोसे वाले थे, तो यह भी उन बच्चों के लिए अन्याय व तंज कसने जैसा होगा, क्योंकि यहां पर कुछ दिन की जल्दी के लिए बच्चों का एक साल का समय बर्बाद किया गया। जिसकी पूरी की पूरी जिम्मेदारी शिक्षा मन्त्री डॉ0 दिनेश शर्मा की होती है। क्या एक गुरू होने के नाते वह इसकी नैतिक जिम्मेदारी को स्वीकार्य करेंगे।
वैसे मनुष्य जीवन के बसंत-काल पर यह हमला है, जिसमें 1047406 लोगों का एक-2 वर्ष छीन लिया गया है। यह भारतीय युवा ऊर्जा के 1047406 वर्षो को क्षय करने जैसा है। इसका जिम्मेदार कौन होगा? सिर्फ और सिर्फ शिक्षा मन्त्री डॉ0 दिनेश शर्मा।