डोकलाम विवाद बढ़ता ही जा रहा है, भारत और चीन की सैनायें डटकर एक दूसरे के सामने खड़ी है, भारत की सेना ने सिक्किम के साथ साथ लद्दाख के बर्फीले इलाकों में भी तैयारी शुरू कर दी है, डोकलाम क्षेत्र जिस पर तनाव चल रहा है वह भूटान का क्षेत्र है चीन उस क्षेत्र पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहा है, भारत इस विवाद में भूटान के साथ खड़ा है जिससे चीन बौखलाया हुआ है चीन की मन्शा भूटान को दूसरा तिब्बत बनाने की है। 1959 में चीन ने तिब्बत पर जबरन कब्जा कर लिया था और वही अब चीन भूटान के साथ करना चाहता है।तिब्बत के साथ 1959 में चीन ने कुछ ऐसा ही किया था तब चीन ने तिब्बत पर जबरन कब्जा कर लिया था उस समय भारी संख्या में तिब्बतियों ने भारत में शरण ली थी। 31 मार्च 1959 को तिब्बत के सबसे बड़े धार्मिक गुरु दलाई लामा ने भी तिब्बत छोड़कर भारत का रूख कर लिया था। चीन के अत्याचारों से बचने के लिए कुछ तिब्बत वासी भारत- तिब्बत सीमा पर रहने लगे थे जो आज भी भारत को अपना रक्षक मानते हैं तथा चीन के साथ उनके दिल में कोई अपनेपन की भावना नहीं है।
डोकलाम विवाद
डोकलाम भौगोलिक दृष्टि से भूटान का क्षेत्र है जो भारत, चीन तथा भूटान के बॉर्डर पर स्थित है भारत के नाथूला दर्रे (सिक्किम) से डोकलाम की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है यह क्षेत्र भारत और चीन दोनों के लिए ही सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है.
भूटान और चीन के बीच डोकलाम सीमा को लेकर 1988 और 1998 में संधि हुई थी कि दोनों देश इस क्षेत्र की सीमा को लेकर शांति बनाए रखेंगे परंतु चीन का डोकलाम क्षेत्र में सेना भेजना तथा कब्जा करने की नीति से आगे बढ़ना संधि की मर्यादा को तोड़ना है, चीन डोकलाम तक सड़क बनाना चाहता है जिससे वह भूटान पर कब्जा कर तिब्बतियों जैसा कायरतापूर्ण कार्य कर सके।
डोकलाम क्षेत्र तक चीन द्वारा सड़क निर्माण करना भारत के लिए भी नुकसानदेह है क्योंकि उससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक चीन की पहुच आसान हो जाएगी फिर वह भारत को पूर्वोत्तर राज्यों से अलग करने की नीति पर कार्य कर सकेगा। भारत चीन की इस मंशा को भाप गया है इसीलिए वह डोकलाम क्षेत्र में चीन द्वारा सड़क निर्माण कार्य का विरोध कर रहा है।
भारत भूटान के साथ 1949 में हुई संधि का मान रखते हुए भूटान की सहायता कर रहा है चीन की नीति हमेशा से पडोसी देशोंं पर दबाव बनाए रखने की रही है परंतु भारत अब ड्रेगन की चाल को कामयाब नहीं होने देगा।