प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि कई बाऱ हम सबको खुश करने की कोशिश करते है लेकिन जैसे हाथो की पाँच ऊँगलियाँ बराबर नहीं होती वैसे ही हर इंसान एक सा नहीं होता कभी-कभी हम किसी के लिए बहुत कुछ करते है फिर भी उसे कम ही लगता है और कभी-कभी हम किसी के लिए छोटा सा ही काम क्यों न करदे उसे वो बहुत बड़ा लगता है और वो हमारा शुक्रगुज़ार बन जाता है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
किसी के लिए कितना भी करलो उसे कम ही लगता है।
बैठे-बैठे ज़िन्दगी के कोई तो बस स्वाद ही चखता है।
किसी ने मेहनत कर बनाया आशियाना,
तो कोई उसमे आराम से रहता है।
मेहनत करने वाले को अज्ञानी, अक्सर कुछ भी कहता है।
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मेहनत की अग्नि में, मेहनत करने वाला ही जलता है।
उसकी सफलता को देख, अज्ञानी बस हाथ ही मलता है।
एहसास हो जाता है, उसे भी फिर अपनी अज्ञानता का।
मज़ाक नहीं उड़ाता फिर वो भी किसी की महानता का।
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तो क्यों ठोकर खाकर ही ये बात समझनी है?
इस दिशा में बढ़कर, जीवन से जुड़ी हर एक गाँठ उलझनी है।
वक़्त रहते साथ दो, तुम अपनों का।
मज़ाक न उड़ाना, तुम कभी भी किसी के सपनो का।
धन्यवाद।