फिर भी

एक चुप सौ को हराता है

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि चुप रहना एक ऐसी कला है जो बड़ी लड़ाई होने से बचाती है। कभी-कभी हम अपनी सही बात भी किसी को समझा नहीं पाते इसलिए ऐसे हालत में वक़्त को वक़्त दो अगर तुम सच्चे हो तो आज नहीं तो कल सबको तुम्हारी बात समझमे आयेगी।

याद रखना दोस्तों कभी-कभी सही होते हुये भी बहुतो की नज़रो में हमे बुरा बनना पड़ेगा लेकिन कभी गलत का साथ न देना. दूसरो का सुनना अगर ज़रूरी है तो अपनी बात रखनी भी ज़रूरी है वरना कभी तुम्हारी कोई बात सुनेगा ही नहीं। बस कोशिश करना अपनी बात शांति से रखो गलती जो हो जाये तो उसे लेके मत बैठना क्योंकि इस दरमियाँ एक गलती और होजायेगी।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

एक चुप सौ को हराता है।
बिन कहे ही, ये अपनी बात सबको प्यार से बताता है।
ऐसी जंग में न होती किसी की लड़ाई।
चुप रहकर ही होती, लाखो की भलाई।
चुप रहकर ही सबको समझमे आता है।
बढ़ती उम्र के साथ-साथ हर मानव ही जीवन की ठोकरे खाता है।
शायद इसलिए क्योंकि इस मन को काबू करना,
सबके बस की बात नहीं।
बहस करने वालो की, इस दुनियाँ में कोई औकात नहीं।
फिर भी कभी-कभी अपने मन की बात रखनी पड़ती है।
चुप रहकर बस खुदको, सुधारने वाली आत्मा ही,जीवन में आगे बढ़ती है।
चुप कर्जा और बढ़ चल अच्छाई के मार्ग पर ही तू बस आगे।
तेरे अच्छे विचारों से ही न टूटेंगे कभी तेरे रिश्तो के धागे।
अपनी परिस्थितियों को छोड़,जो उनसे दूर है भागे।
दूर होकर भी, वो रातो में परेशान होकर ही जागे।

धन्यवाद।

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