फिर भी

बच्चा गरीब का

gareeb ka baccha kavita

माँ-बाप की मजबूरियां समझ जाता है,
बच्चा गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है,

अँधेरी है ऐसी जीवन में उसके आती,
उड़ा ले जाती बचपन उसका और संगी-साथी,

सारी चाहते छोड़कर अपनी ख्वाहिशे तोड़ कर अपनी,
बस यही सपना की माँ-बाप के लिय पैसा कमाना है,

सपनो से अपने रिश्ता तोड़ लेता है,
हर चीज़ से मुख मोड़ लेता है,

कोई चीज़ माँ-बाप की पहुँच से उसको दिलाना हो मुश्किल,
तो दवाई भूलने की उसको मन में अपने हर रोज़ लेता है,

मेहनत करते करते कब गुजरा बचपन और आई जवानी,
जी-तोड़ पसीना ऐसे बहाया जैसे बहाय कोई पानी,

कभी कभी भूखा भी रहता है,
दर्द दिल में सहता है,

समझे हितेश वो फिर भी आह तक नहीं कहता है,
हर चीज़ के आभाव में बस आगे बढ़ता रहता है,

माँ-बाप की मजबूरियां समझ जाता है,
बच्चा गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है.

जय हिन्द !

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न हितेश वर्मा ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com.

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