फिर भी

बीजेपी पार्टी के जिला अध्यक्ष धर्मवीर ने किया पार्टी का गुणगान

भारतीय जनता पार्टी, भारतीय जनसंघ की उत्तराधिकारी है जिसका 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था |
जनता पार्टी के आतंरिक मतभेदों के फलस्वरूप 1979 में जनता पार्टी सरकार गिरने के पश्चात 1980 में भारतीय
जनता पार्टी का एक स्वतंत्र दल के रूप में उदय हुआ|2014 बीजेपी के लिए सबसे अहम साल रहा.

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 282 सीटों पर जीत हासिल की. इस बार बीजेपी को सरकार बनाने के लिए किसी पार्टनर की ज़रूरत नहीं पड़ी. मोदी ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और प्रधानमंत्री की
कुर्सी तक पहुंचे. 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पूर्ण बहुमत मिला और उसके बाद अक्तूबर
2014 में हुए महाराष्ट्र और हरियाणा के विधान सभा के चुनावों में भी उसने कांग्रेस पार्टी से सत्ता छीन ली.

अब सवाल उठता है कि ऐसे हालात में गठबंधन राजनीति की कोई भूमिका है या नहीं. हमारे मत में इसका स्पष्ट उत्तर
है, हाँ.. भूमिकाहै ; लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने के लिए चुनाव-पूर्व गठबंधन भाजपा के लिए आवश्यक था और
महाराष्ट्र में चुनाव के बाद का गठबंधन आवश्यक है. भविष्य में भी विधेयक पारित कराने के लिए और पार्टी की
पहुँच को बढ़ाने के लिए गठबंधन बनाये रखना आवश्यक होगा. सबसे अंतिम, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि
गठबंधन राजनीति का महत्व बना रहेगा, क्योंकि भाजपा का घोषित लक्ष्य यही है कि वह उत्तरी और मध्य हिंदी
पट्टी के राज्यों और तीन पश्चिमी राज्यों के अपने आधार का और विस्तार करे. इसके लिए उसे संभवतः कर्नाटक
और असम को छोड़कर दक्षिण और पूर्व के अन्य राज्यों में सहयोगी दलों की ज़रूरत होगी.

इसकी वजह यह है कि उत्तरी और मध्य भारत के हिंदीभाषी राज्यों और संघशासित क्षेत्रों में और तीन पश्चिमी राज्यों और संघशासित क्षेत्रों में जो बहुत प्रचंड बहुमत भाजपा को मिला है, उसके अनुपात में लोकसभा में भाजपा के पास मात्र 52 प्रतिशत का संकीर्ण बहुमत है. भाजपा की 282 सीटों में से 244 सीटें अर्थात् 87 प्रतिशत सीटें इसी हिंदी पट्टी और पश्चिमी भारत के उनके मज़बूत गढ़ से ही आई हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा ने इस क्षेत्र की 304 सीटों में से 81
प्रतिशत सीटें अपने खाते में कर ली हैं. वस्तुतः इस क्षेत्र की 266 सीटों में से 244 अर्थात् 92 प्रतिशत सीटों पर
उसने चुनाव लड़ा था और इस क्षेत्र में उसका वोट शेयर 44 प्रतिशत था. आगामी चुनावों में भी इसी करिश्मे को
बनाये रखने की संभावना बहुत ही कम है. भाजपा इस सचाई से वाकिफ़ है. यही कारण है कि वह दक्षिण और पूर्व
में अपने आधार को मज़बूत कर लेना चाहती है. यह बात दो ही उपायों से हो सकती है. या तो उसके वोट शेयर में
जबर्दस्त उछाल आए, जिसकी संभावना बहुत कम है या फिर क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोगी दलों के साथ चुनाव-पूर्व
गठबंधन किया जाए.

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