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B’Day Special : राज कपूर, भारत के सबसे बड़े शोमैन

“शो मस्ट गो ऑन” कहने वाले भारत के सबसे प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता और निर्देशक राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर 1924 को पाकिस्तान के पेशावर में हिंदू पंजाबी परिवार में हुआ था. राज कपूर के पिता का नाम पृथ्वीराज कपूर और माता का नाम रामसरणी देवी था. Raj Kapoorराज कपूर अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान थे. शम्मी कपूर और शशि कपूर दोनों राज कपूर के छोटे भाई है. शम्मी कपूर और शशि कपूर ने भी फिल्मी दुनिया में राज कपूर की तरह ही अपनी एक अलग पहचान बनाई है.

राज कपूर ने अपने प्रारंभिक शिक्षा देहरादून से प्राप्त की है उन्होंने केवल 5 वर्ष की उम्र में ही “मृच्छकटिक” नामक एक नाटक में काम किया था. राज कपूर 10 साल की उम्र में पहली बार “इंकलाब” फिल्म में पर्दे पर नजर आए थे.

राज कपूर ने “गौरी” और “आफ्टर द अर्थक्वेक” जैसी फिल्मों में बाल कलाकार का अभिनय किया था जो कि काफी सफल रही थी. यह फिल्म 1935 में रिलीज हुई थी इस फिल्म में मुख्य अभिनेता के किरदार में उनके पिता पृथ्वीराज कपूर और अभिनेत्री दुर्गा खोटे थी.

बचपन में स्कूल के बाद राज कपूर अपना सारा समय अपने पिता जी पृथ्वीराज कपूर के साथ उनके सेट पर बिताते थे, जिसमें वह कभी ट्रॉली पुलर तथा प्लेयर बॉय का काम भी करते थे.

राज कपूर ने बॉन्बे टॉकीज की बहुत सारी फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम भी किया था.

1947 में “नील कमल” में राज कपूर बतौर हीरो पहली बार अभिनय किया था इस फिल्म में मधुबाला ने उनके साथ काम किया था. इसी के साथ उन्होंने “चाल” और फिल्में चितचोर, दिल की रानी और जेल यात्रा, में भी बहुत अच्छा काम किया था. इन सभी फिल्मों में भी उनकी को एक्टर मधुबाला ही रही थी.

राजकपूर की फिल्म “आवारा” ने राजकपूर को केवल भारत ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में स्टार बना दिया. चाहे वो रूस, तुर्की, अफ़ग़ानिस्तान और चीन में लोगो ऐसा जादू कर दिया कि सबकी जुबान पर “आवारा हु” गाना छा गया था.

अपनी सभी फिल्मों को बड़े ही खास अंदाज में निभाते थे. वह हर अभिनय को बहुत ही सादगी निभाते थे कि जैसे वह उनकी असल जिंदगी का हिस्सा रहा हो. उनकी सभी फिल्में ना केवल मनोरंजन के लिए होती थी, बल्कि हर एक फिल्म में कुछ न कुछ सीख जरूर रहती थी.

उनकी सबसे यादगार फिल्मो में “मेरा नाम जोकर” एक ऐसी फिल्म थी जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के हर एक पड़ाव यानि अपने बचपन जवानी तथा बुढ़ापे को भलीभांति देख सकता है. इस फिल्म में उनका अभिनय अदभुत था उनकी आंखों में इस पल आंसू तथा अगले ही पल मुस्कान होती थी. जो कि एक महान कलाकार की निशानी होती है.

राज कपूर को जिस समय दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलने वाला था, ठीक उससे 1 महीने पहले ही उनका देहांत 2 जून 1988 में अस्थमा के अटैक के कारण हो गया .

राज कपूर ने अपने 63 साल के जीवनकाल में उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए एक ऐसा सफर तय किया है जिसपर उनके बाद हर कलाकार चलना चाहता है और उनके जितना ही महान कलाकार बनना चाहता है. राज कपूर अपने समय में सबसे बड़े शोमैन रहे.

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