फिर भी

बरसे अब तो बादल

barse to ab baadal

हुई जब काले घने बादलो में गड़गड़ाहट,
घोसलो में जाते पंछियों में हुई चहचहाहट।
देख कड़कती आसमानी बिजली की चमचमाहट,
कच्ची छत, मेहनत-कश गरीब को हुई घबराहट।
बोई फसल किसान को है, बारिश की आहट।
गर्मी से त्रस्त आमजन में हुई सुगबुगाहट।
बरसे अब तो बादल, तपती भूमि और तन को मिले राहत।
है सबकी यही चाहत, बरसे अब तो बादल, बरसे अब तो बादल।

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न “विशाखा जैन” ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com

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