फिर भी

वक़्त रहते वक़्त पर सबको सच का पता चल ही जाता है

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को आज के युग के सीधे और सच्चे लोगो का दर्द बताने की कोशिश कर रही है।

अब आप इस कविता का आनंद ले.

गलती मेरी कोई बक्शता नहीं,
और सुनना मेरी कौन ही चाहता है??
ऐसे बदलते माहौल को देख,
मेरा अंतर मन भी कभी-कभी अकेले में अश्क बहाता है।
कभी रोकर, तो कभी हसकर,
इस दिल को सुकून मिल जाता है।
मगर क्या इस कलयुग में,
हर कवियत्री या कवि का दिल,ऐसेही भर आता है??
किसी को ताने मार,
तो किसीको यहाँ दुखी करके सुकून मिल जाता है।
अपने ही किये, आने वाले, गलत कर्मो का कहर,
हर दूसरा इंसान ही यहाँ भूल जाता है।
क्यों इंसान ही यहाँ इंसान को खुल के जीने नहीं देता।
अपने व्यवहार की परवाह नहीं,
और दूसरों के व्यवहार को सुधारने की हज़ार टिपड़िया वो देता।
जीने दो सबको जो जैसे भी जीना चाहता है।
वक़्त रहते वक़्त पर सबको सच का पता चल ही जाता है।

धन्यवाद

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