फिर भी

अगर तुम ना होते

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री अपना प्यार अपने प्रिय प्रभु बुद्धा के प्रति ज़ाहिर कर रही है वह अपने प्रभु से जैसे मन ही मन कह रही है कि हे प्रभु अगर आप या आपकी बातें आज इस दुनियाँ में नहीं होती तो ये ज़िन्दगी कितनी बेरंग होती किसीको शांति का रास्ता समझ में नहीं आता सब अपनी-अपनी मर्ज़ी से जीते।

लेकिन मुझे फिर भी दुख होता क्योंकि आपकी बातें तो है इस दुनियाँ में लेकिन उसे समझने वाले बहुत ही कम लोग है कोई तो मुफ्त में भी आपकी दी हुई शिक्षा ग्रहण नहीं करना चाहता। अंत में कवियत्री अपने प्रभु से कह रही है कि हे प्रभु हम मानव है हमसे बहुत बार गलती होती है हर परिस्थिति में आपके बताये हुये मार्ग पर चलता मुश्किल होता है इसलिए कभी अनजाने में भी हमने कभी आपका दिल दुखाया हो तो हमे माफ़ करना क्योंकि कभी-कभी अपनी गलतियों पर हमे भी रोना आता है लेकिन ये मन बड़ा ही चंचल है आपको और आपकी बातो को इतनी आसानी से समझ नहीं पाता।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

अगर तुम ना होते,
तो ये ज़िन्दगी कितनी बेरंग होती।
कटता मुश्किल से दिन,
न हर रोज़ मैं चैन से सोती।
एक कशिश है, तुम्हारे ज्ञान की छाओ में,
मिलना चाहता हर कोई तुमसे, अब तो मेरे गांव में।
कैसे दिखाऊ इस दुनियाँ को मैं शांति का रस्ता??
बेशकीमती ज्ञान भी होगया, इस ज़माने में देखो कितना सस्ता।
कि मुफ्त में भी तो कोई सुनना नहीं चाहता।
गलती कर पहले, फिर हर कोई तुम्हारे सामने अश्क है बहाता।
अपनी करुणा की द्रिष्टी हम सब पर बनाये रखना।
हमारे बनाये हर भोजन को तुम प्यार से चखना।
जब हो कोई गलती तो प्यार से बताना।
अपने से हमे दूर रख, हमे कभी ऐसे न सताना।
मानव हूँ गलती तो हम सब से ही होती है।
तुम्हे अनजाने में भी दुख पहुँचा कर,
मेरी अँखिया भी तुम्हे दुखी देख रोती है।

धन्यावद।

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