फिर भी

निकलोगे तभी तो जानोगे

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि वक़्त रहते अपने जीवन में आने का मकसद समझो, एक-एक पल कीमती है हम हर वक़्त ही तो खत्म हो रहे है। कवियत्री सोचती है वक़्त रहते अपनों को अपने मन की बात बताओ अपनों से सिर्फ इसलिए प्यार मत करो की बस रिश्ता निभाना है और केवल अपनों से ही क्यों दुनियाँ में बहुत लोग है जो दुखी है आप अपने प्यार से उनका सहारा बन सकते हो। struggle
हर दिन अपने आप से ये पूछो की क्या आज का दिन मैंने सही से बिताया? क्या बस आज मैं ईमानदारी से जिया? दोस्तों बाहर निकल कर देखो हर इंसान दुखी है हर इंसान कही न कही खुदको अकेला समझता है तो क्या हुआ हम सबको खुश नहीं कर सकते किसी एक को ही कर दिया तो बहुत है। जब हर इंसान ये सोचेगा तो एक दिन काफी लोग एक साथ खुश होजायेंगे।याद रखना दोस्तों किसी पर अपनी बातो का दवाब मत डालना क्योंकि दवाब की घुटन तुम्हे खुल के जीने नहीं देती।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

रिश्तो के धागे में सिमटे होते है मोती,
धागे की पकड़ जो ज़रा भी कमज़ोर होती,
उन बिखरे मोती को देख,इंसानियत भी रोती।
फिर वक़्त पर धागे की लगाम तुमने क्यों नहीं पकड़ी??
दवाब के पड़ने से, डूब जाती है पानी में बहती लकड़ी।
आवाज़ लगाओ अपनों को और वक़्त पर उन्हें अपने मन की बात बताओ,
रिश्तो को निभाना है बस इसलिए ही,
तुम अपना प्यार सिर्फ अपनों पर ही मत जताओ।
निकलो दुनियाँ की इस भीड़ में,
न जाने कितने लोग दुख के मारे है।
दुख है ज़्यादा और बचे कम सहारे है।
अपनी काबिलियत को सही वक़्त पर सही काम पर लगाओ।
देकर खुदको खाली वक़्त में आराम,
बस दूसरों से जग कल्याण की उम्मीद मत लगाओ।
निकलोगे तभी तो जानोगे,
अपनी काबिलियत के बल पे तुम सही-गलत को पहचानोगे।
देखोगे जब चारो तरफ दुख का मेला,
समझ पाओगे इस जीवन में है हर इंसान ही अकेला।

धन्यवाद।

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