फिर भी

सच्चा मित्र यूँ ही नहीं मिलता

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि हमारा सच्चा मित्र या हमारा अपना कोई और नहीं हम खुद ही होते है अपनी क्षमताओं को वक़्त पर न पहचान हम अक्सर अपने दुख में रोते है।

कवियत्री सोचती है हम कितना वक़्त दिन का यूही बिता देते है, अपने अंदर झाँकने की किसी को फुरसत ही नहीं शायद इसलिए क्योंकि दूसरे में दोष देखना आसान है लेकिन खुदपर नियंत्रण पाना बहुत ही मुश्किल है। याद रखना दोस्तों हमारा सच्चा मित्र हमारे अंदर ही छुपा है लेकिन उसे पाने के लिए हमे सबसे पहले अपने इस मन को काबू करना होगा क्योंकि उस मित्र को पाने का रास्ता भले ही मुश्किल है लेकिन सुकून उसी को पाके मिलता है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

अनदेखा न कर अपनों को,
सकार कर, अपनों के भी सपनो को।
वक़्त भले ही कम है,
बस उसी वक़्त में भी, वक़्त निकालना सीखले।
या अपने दुखो को लेके, तू अकेले में कही चीखले।
तेरा अपना कोई दूसरा नहीं बस तेरा ये अंतर मन है।
काबू कर इसको इसमें छुपा न जाने कितना अनमोल धन है।
बैठ खुदके संग और करले कभी खुदसे भी चार बाते।
बिता दी तूने यूही सोके, न जाने कितनी गम की राते।
तेरा सच्चा मित्र, तेरे अंदर ही बैठा है।
जीवन की हर परिस्थिति में, वो तुझसे बस यही कहता है।
बस मेरा हाथ थाम कर ही , तुझे आगे चलना है।
अपने को कर यू उदास, तुझे बस हाथ ही नहीं मलना है।
काबू पाकर इस मन पर, तू मुझे पा लेगा।
अपने इस लक्ष्य की पूर्ति में तू इस जगत को भी बहुत कुछ देगा।

धन्यवाद।

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