प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि जन्म से कोई इंसान समझदार पैदा नहीं होता हर इंसान में कोई न कोई कमी होती है और वक़्त रहते एक नासमझ इंसान भी समझदार बन जाता है। नासमझ से समझदार बनने की दूरी में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन फिर एक दिन वही नासमझ अपनी समझदारी से दूसरो को भी सही राह दिखाता है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
एक नासमझ को भी वक़्त पर समझ आ जाती है।
उसकी न समझी ही, उसे जीवन में कितना कष्ट पहुँचाती है।
उसकी अज्ञानता ही उसके दुख का कारण बन जाती है।
ठोकरों की चपेट में, उस नासमझ को भी समझ आ जाती है।
पैदा होते ही, तो कोई ज्ञानी बन जाता नहीं।
कोई समझदार यूँ ही नहीं बनता,
जब तक जीवन की ठोकरे,कोई खाता नहीं।
समझदार बनकर फिर इस समझदारी से,
इस जीवन को चलाना पड़ता है।
ठोकरों के रहते ही, इंसान जीवन में आगे बढ़ता है।
सही दिशा की राह में, बुराई मिलने पर भी,
वो अपने को संभाल और अच्छा ही करता है।
हे मानव अपनी कदर न कर,तू क्यों दूसरों पर मरता है ??
तो क्या हुआ आज तुझमे थोड़ी समझ की कमी है।
अपने को कम समझ, तेरी आँखों में ही तो, दु:ख की नमी है।
मेहनत कर और बढ़ चल आगे,
तुझे देख मज़बूत होँगे और भी असफल व्यक्तियों के इरादे।
धन्यवाद