बेखबर कर खुदको यू न बैठो

khud na bhul kr yu baith

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को यह समझाना चाह रही है कि सीधा होना अच्छी बात है लेकिन इतना सीधा भी नहीं होना चाहिये कि दुनियाँ आपके भोलेपन का फ़ायदा उठाये। वह कहती है कि इंसान को पहले खुदसे प्रेम करना होगा, खुद पहले कुछ बनके दिखाना होगा तभी वह दूसरों को भी राह दिखा सकता है.

इसलिए आप सबको मन में पढ़ो कभी -कभी हमारी भावना गलत नहीं होती परन्तु लोग फिर भी हमे गलत समझ लेते है। इसलिए आप अपने आप को व्यस्त रखें किसी भी काम में जो आपको पसंद हो लेकिन याद रहे उसके रहते भी हमे दुनियाँ से बेखबर होकर नहीं रहना है। क्योंकि हर इंसान को एक दूसरे की ज़रूरत होती है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

बेखबर कर खुदको यू न बैठो,
कि लोग तुम्हारी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाये।
फिर चाह कर भी, हम किसी से कुछ कह न पाये

बेखबर कर खुदको यू न बैठो ,
कि दुनियाँ कि हरकतो को पढ़ न सको।
सुनो सबकी पर बात अपनी भी रखो।

बेखबर कर खुदको यू न बैठो ,
कि हर राह में तुम्हें अपनी मंज़िल दे दिखाई।
जिसने ढूंढी अपनी सही मंज़िल,
उसने दूसरों को भी सही राह है दिखाई।

बेखबर कर खुदको यू न बैठो,
कि हर एक पर भरोसा कर बैठो,
जो दिखते है केवल बाहर से अच्छे,
कही तुम उनसे अपने मन की बात न कह बैठो।

बेखबर कर खुदको यू न बैठो ,
कि अपना सबसे करीबी दोस्त,
खुदको तुम भूल न जाना।
भूल जायेगा ये ज़माना,
केवल तुम ही हो जिसने,
अपनी तकलीफों को सही से है जाना।

बेखबर कर खुदको यू न बैठो ,
कि किसी और के सपने को पूरा कर,
तुम खुद का सपना भूल जाओ।
समझ के अपनी भावनाओं को,
इतिहास में तुम भी अपना नाम रचाओ।

बेखबर कर खुदको यू न बैठो,
कि तुम्हें तुम्हारी क्षमता का आभास ही न हो।
दूसरों को सफल देख,
तुम कही अकेले में न रो।

अगर आपको ये कविता पसंद आई तो अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिये जिससे लोगों सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।

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