बहती है! तब
अश्रुधारा आंख से,
जब ओझल होता है
कोई प्यारा आंख से,
आंखे मूंद कर विश्वास
मत करो किसी का क्योंकि,
कभी कभी हाथ जल भी जाते है!
बूझी हुई राख से,
बहुउपयोगी होती है जड़ीबूटीयां
उसी से भटकती है दिशा जीवन की,
भगवान शिव की उपासना
होती है उसी आक् से,
अकेला चना क्या भार ढोयेगा..?
तख्त अक्सर पलट जाया करते है,
एकमुश्ठ होकर
की गई मांग से…..!!!
हितेश वर्मा, जयहिन्द
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Very Nice