फिर भी

पवई की झुग्गी बस्ती में रहने वाले 25 वर्षीय प्रथमेश हिरवे की इसरो तक पहुंचे

कई लोगों को लगता है कि मै अपने जीवन में कुछ करके दिखा सकता हूँ लेकिन सभी इसमें सक्सेस नही होते क्योंकि उसमे जो मेहनत करता है वो हीरो बन जाता है । जो मेहनत नही करता वो जीरो बन जाता है ।

कड़ी मेहनत हमेशा कुछ ना कुछ रंग लाती है आज हम बात करने वाले है । उस शख्स की प्रथमेश हिरवे जो अपनी लगन से सीधा इसरो पहुचे । उनका पूरा परिवार दस बाय दस के छोटे से कमरे में रहता है। बेहद गरीबी में पले-बढ़े प्रथमेश ने अपनी इच्छा शक्ति की बदौलत यह मुकाम हासिल किया है।

प्रथमेश ने इसरो तक पहुंचने के लिए जोरदार संघर्ष किया है । प्रथमेश के पिता एक प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं और उनकी मां एक हाउस वाइफ हैं झुग्गी बस्ती में रहने वाले एक युवक इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (इसरो) का साइंटिस्ट बन गया है। साइंटिस्ट बनने वाला वह मुंबई का पहला है प्रथमेश के माता-पिता उन्हें एक इंजीनियर बनाना चाहते थे।

लेकिन काफी प्रयास के बावजूद उनका एडमिशन इंजीनियरिंग में नहीं हो सका। बी. एम. पॉलिटेक्निक कॉलेज में इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स में एडमिशन लिया।- प्रथमेश मराठी मीडियम से पड़े होने की वजह से उनको अंग्रेजी एक समस्या बनी थी

प्रथमेश ने संघर्ष करके अंग्रेजी मै उन्होने प्रभुत्व मिलाया इंदिरा गांधी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से साल 2014 में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। इसके बाद पिछले साल प्रथमेश ने इसरो के लिए अप्लाई किया। लेकिन उस दौरान उन्हें सिर्फ वेटिंग लिस्ट मिली।

इसके बाद उन्होंने एक कंपनी में बतौर इंजीनियर काम शुरू किया। लेकिन इसरो पहुंचने का सपना नहीं छोड़ा।

[स्रोत- बालू राऊत]

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