भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिवसीय दौरे पर इजरायल गए हैं। इजराइल का दौरा करने वाले नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति भारत को और अधिक मजबूत करने की दिशा में अग्रसर है। भारत इजराइल के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने से बचता आया है, उसके पीछे का कारण यह था कि इजराइल के साथ संबंधों के बाद से ही देश में गठबंधन की सरकार बनती आई है ऐसे में कोई भी दल देश के मुसलमानों को नाराज नहीं करना चाहता था।
इजरायल यहूदी बहुतायत देश है और यहूदियों और मुसलमानों का बैर बहुत पुराना है। मोहम्मद साहब ने जब खुद को पैगंबर घोषित किया था तो उन्हें यह उम्मीद थी कि यहूदी भी उनका समर्थन करेंगे परंतु यहूदियों ने उनका समर्थन नहीं किया।
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भारत और इजरायल के राजनीतिक संबंधों की शुरुआत 1992 में पी वी नरसिंह राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुई परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह नीति दर्शाती है कि अरब देशों के साथ संबंध स्थापित कर इजरायल से संबंध बनाने से उन्हें मुस्लिमों का समर्थन भी प्राप्त हो गया है और इजरायल से संबंध बनाने में उन्हें मुसलमानों की नाराजगी का असर भी नहीं दिख रहा है।
प्रधानमंत्री के इस दौरे से रिश्ते में नई पगढता आएगी तथा भारत इजरायल संबंधों की रुकावट समाप्त हो जाएगी। कारगिल युद्ध के दौरान इज़राइल द्वारा भारत की की गई मदद को भुलाया नहीं जा सकता उसी समय से इसराइल को भारत ने भरोसेमंद देश मान लिया था।
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Israel। इजरायल की इनोवेशन तथा टेक्नोलॉजी भारत के विकास में गति प्रदान करेगी। हथियारों की खरीद के मामले में इजराइल भारत का पांचवां सबसे बड़ा स्रोत है। भारत ने पिछले 10 सालों में लगभग 10 अरब डॉलर के हथियार खरीदे हैं तथा अधिकतर मानव रहित विमान इजरायल से ही खरीदे हैं। इजराइल के साथ रक्षा संबंधों से भारत के “मेक इन इंडिया मिशन” को नई दिशा मिल सकेगी। इसके साथ ही भारत इजराइल संबंधों से कृषि क्षेत्र में प्रगति होगी इजराइल की ड्रिप एरीगेशन (बूंद सिंचाई) पद्धति से भारत में कृषि के लिए पानी की समस्या को दूर किया जा सकेगा।
इजराइल खारे पानी को मीठे पानी में बदलने की पद्धति में विशेषज्ञ है, इजराइल के सहयोग से ही भारत में मीठे पानी के अनेक संयंत्र स्थापित किए गये हैं। प्रधानमंत्री के इस दौरे से यह पद्धति भारत में और अधिक विकसित हो सकेगी इसके साथ ही दोनों देशों से व्यापार को भी नई दिशा मिल सकेगी।