किसी भी देश की एकमात्र ताकत को हम उस पर हुए आतंकी और परमाणु हमले से पलट कर वार करने मे समझते है. यह वाक्य कुछ मायनो मे ठीक भी है क्योकि हमेशा सैन्य ताकते ही कुछ ऐसे ही हमलो को अंजाम देती है, जिसे देश की आंतरिक शक्ति के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन कभी सरकार के पास ऐसी विभिन्न परिस्थिति आती है जब उसकी सरकार और सैन्य ताकत बिल्कुल निराधार पड़ जाती है. दोनो का उस समय कोई औचित्य नही रहता.
कुछ ऐसा ही हुआ आज से करीब 72 साल पहले 6 अगस्त 1945 को, जहाँ जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले हुआ था. 6 अगस्त की सुबह 8:15 मिनट पर हिरोशिमा शहर के केंद्र से 580 मीटर की दूरी पर परमाणु बम का विस्फोट हुआ. विस्फोट इतना भयावह था कि शहर का करीब 80 फीसदी हिस्सा इसकी चपेट मे आ गया. हमले में लोग, जानवर और पौधे सब कुछ जल गये थे.
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पूरा शहर शमशान मे तब्दील हो चुका था. चारो तरफ जली हुई लाशो के ढ़ेर थे. बस उनका अवशेष ही दिखाई दे रहा था. उन लोगो ने कभी सपने मे भी नही सोचा होगा कि उनके साथ ऐसी दुखद और इतनी भयावह घटना भी घट सकती है. कुदरत का ऐसा मंजर पहले कभी नही देखा था. जहां हमे सिर्फ लाशे ही मिल रही है कोई जीवित इंसान नही.
इसे हम मानवता के उपर सबसे बड़ा हमला भी घोषित कर सकते है. मानव जाति का मूल्य सिर्फ वही समझ सकता है जिसने हमे इस संसार मे मानव रूप मे जन्म लेने का अधिकार दिया है. जापान ही अब तक का एकमात्र ऐसा शहर है जिसने इतने बड़े परमाणु हमले की त्रासदी को झेला है. हमले से पीड़ित आज भी कई लोग अपने उपर हुई दास्तां को बयां कर दुख जताते है.
दरअसल, हिरोशिमा और नागासाकी दोनो शहरो पर अमेरिका ने परमाणु बम गिराए थे. अमेरिकी बॉम्बर प्लेन बी-29 से किये गये इस हमले में लोग, जानवर और पौधे सबकुछ जल गये थे. अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के एक आदेश ने हिरोशिमा शहर को लाशों के शहर में तब्दील कर दिया था. इन दोनो हमलो मे करीब 2 लाख लोग मारे गए थे.